ऊष्मा स्थानान्तरण की विधियां | Heat Transfer Method | चालन, संवहन और विकिरण विधि

0

ऊष्मा का स्थानान्तरण (संचरण) क्या है?

ऊष्मा के स्थानान्तरण का अर्थ होता है ऊष्मा का स्थान बदलना अर्थात ऊष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान अथवा एक वस्तु से दूसरी वस्तु में ताप के अन्तर के कारण जाने की प्रक्रिया को ऊष्मा का संचरण या स्थानान्तरण (transmission of heat) कहते है। ऊष्मा का स्थानान्तरण सदैव उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है।
Method Of Heat Transfer
Heat Transfer Method In Hindi

ऊष्मा स्थानान्तरण की विधियां (Method Of Heat Transmission):— ऊष्मा स्थानान्तरण की तीन विधियां है अर्थात किसी वस्तु में ऊष्मा तीन प्रकार से चल सकती है, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है।

1. चालन (Conduction):— इस विधि में माध्यम के कण अपना स्थान नही छोड़ते है केवल ऊष्मा स्थानान्तरण (transfer) करते है।
ठोस में चालन द्वारा ऊष्मा का स्थानान्तरण होता है। जब किसी धातु के छड़ के भाग पर तापान्तर होता है अर्थात किसी स्थान पर ताप अधिक और किसी स्थान पर ताप कम होता है तब धातु के छड़ के ऊंचे ताप वाले कण अपने निकट के नीचे ताप वाले कण को ऊष्मा संपर्क द्वारा देते है। अतः ऊष्मा का ऊंचे ताप वाले स्थान से नीचे ताप वाले स्थान की ओर संचरण होने लगता है। ऊष्मा संचरण की इस प्रक्रिया को जिसमे माध्यम के कण अपने स्थान से नहीं हटते और ऊष्मा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाती है ऊष्मा स्थानान्तरण की इस विधि को चालन कहते है।
जैसे— इलेक्ट्रिक आयरन (electric iron), हीटर (heater), सोल्डरिंग आयरन (soldering iron) इत्यादि।
(जब किसी धातु के छड़ के एक सिरे को गर्म किया जाता है तो कुछ देर बाद छड़ पूरी गर्म हो जाती है )

2. संवहन (Convection):— संवहन में माध्यम के कण स्रोत से ऊष्मा लेते है तथा नए कण माध्यम के पास आ जाते है।
द्रव और गैस में संवहन के द्वारा ही ऊष्मा का स्थानान्तरण होता है। जब किसी तरल (द्रव या गैस) को गर्म किया जाता है तो एक स्थान पर तरल का ताप अधिकतम तथा दूसरे स्थान पर कम हो जाता है। ताप के बढ़ने से तरल का घनत्व कम हो जाता है अतः तरल के ऊंचे ताप वाले कण हल्के होने के कारण ऊपर उठने लगते है और उनके स्थान पर नीचे ताप वाले कण आ जाते है यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक सम्पूर्ण तरल का ताप एक समान न हो जाए। ऊष्मा संचरण की वह प्रक्रिया जिसमे माध्यम के कण स्वयं स्थानांतरित होते है संवहन कहलाती है।
जैसे— जल का गर्म होना (जब किसी पात्र में जल को गर्म किया जाता है तो संवहन के कारण पात्र के नीचे वाले कण ऊष्मा लेकर ऊपर आ जाते है और ऊपर वाले कण ऊष्मा लेने हेतु नीचे चले जाते है यह प्रक्रिया चलती रहती है और पानी गर्म हो जाता है), गीजर, वाटर हीटर, इमर्सन रॉड और इलेक्ट्रिक केतली इत्यादि।

3. विकिरण (Radiation):— विकिरण में माध्यम के कण बिना किसी माध्यम के प्रवाहित होते है। ऊष्मा सीधे वायु मार्ग से चलती है अर्थात खुले पथ में चलती यह किसी प्रकार का माध्यम नहीं होता है। ऊष्मा एक सीधी और सरल रेखा में चलती है। ऊष्मा संचरण की इस विधि में न तो पदार्थ के कणों का स्थानान्तरण होता है और न ही पदार्थ के बीच पड़ने वाला माध्यम गर्म होता है अर्थात इसमें माध्यम की आवश्यकता नहीं होती हैं ऊष्मा स्रोत से सीधे ही प्राप्त हो जाती है। किसी गर्म स्रोत से ऊष्मा का संचरण विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में होता है।
जैसे— सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक विकिरण के द्वारा पहुंचता है, माइक्रोवेव ओवन में भोजन का पकना।

हीटिंग एलिमेंट के हिट (heat) को कंट्रोल करना:— ऑटोमेटिक उपकरणों में ताप नियंत्रण करने हेतु थर्मोस्टेट का प्रयोग किया जाता है।

(i) ताप नियंत्रित करने के लिए थर्मोस्टेट को हीटिंग एलिमेंट के सीरीज (series) में संयोजित किया जाता है।
(ii) थर्मोस्टेट का कार्य सिद्धांत थर्मल ओवरलोड रिले (thermal overload relay) के समान होता है।
(iii) गीजर में थर्मोस्टेट ताप सेटिंग (ताप की range) 32°C से 88°C तक होती है।
(iv) थर्मोस्टेट उत्तम अवस्था में होता है तो उसका प्रतिरोध शून्य ओह्म (0Ω) होता है। शून्य ओह्म नही हो तब केवल कुछ ओह्म ही दर्शाना चाहिए।
(v) द्विधात्विक पत्ती (कॉपर, ब्रास) की होती है तथा उष्मीय सिद्धांत पर कार्य करता है पत्ती के कार्य करने का तरीका ऊष्मा के प्रसार और संकुचन (गर्म होकर फैलती है और ठंडा होकर सीधी सेट हो जाती है) पर आधारित होता है।
(vi) लो तापमान (low temperature) प्राप्त करने के लिए दो हीटिंग एलिमेंट (two heating elements) को श्रेणी क्रम (series) में एक साथ जोड़ा जाता है।
(vii) उच्च तापमान प्राप्त करने के लिए दो हीटिंग एलिमेंट (two heating elements) को समान्तर क्रम (parallel) में एक साथ जोड़ा जाता है।

ताप मापने के उपकरण:— सामान्य ताप जैसे हीटर, गीजर और प्रेस इत्यादि का तापमान मापने के लिए थर्मामीटर (तापमापी) का प्रयोग किया जाता है तथा उच्च तापमान जैसे भट्टियों का ताप (4000°C) मापने के लिए पायरोमीटर का प्रयोग किया जाता है।

ताप के पैमाने (Formula Of Temperature Calculation or Conversion):— तापमान को सामान्यतः 4 अलग–अलग यूनिट में मापा जाता है।
°C= सेल्सियस या सेंटीग्रेट
°F= फारेनहाइट
K= केल्विन (0K परम ताप)
°R= रियूमर
What Is Temperature Conversion Formula
Formula Of Temperature Conversion

याद रखने योग्य बातें:—
A. –40° तापमान पर सेल्सियस और फारेनहाइट पैमाना बराबर होता है।
B. ऊष्मा (heat) का स्थानान्तरण तापान्तर (temperature difference) के कारण होता है यदि दो धातुओं के बीच तापमान समान है तो ऊष्मा का स्थानान्तरण कभी नही होगा।

FAQ:—
ऊष्मा स्थानान्तरण की अलग–अलग विधियां क्या है?
(A) चालन, विकिरण और परावर्तन
(B) चालन, परावर्तन और संवहन
(C) संवहन, विकिरण और परावर्तन
(D) संवहन, विकिरण और चालन
उत्तर— D

किस तापमान पर सेल्सियस और फारेनहाइट पैमाना बराबर होता है?
(A) –40°
(B) 15°
(C) – 20°
(D) 75°
उत्तर— A

ऊष्मा संचरण की किस विधि द्वारा सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचता है?
(A) संवहन
(B) चालन
(C) विकिरण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर— C

ठोस पदार्थो में ऊष्मा का संचरण किस विधि के द्वारा होता है?
(A) विकिरण
(B) चालन
(C) संवहन
(D) इनमे से कोई नहीं
उत्तर— B

अन्य महत्वपूर्ण टॉपिक:—

Post a Comment

0 Comments

Please do not enter any spam link in the comment box. All the comments are Reviewed by Admin.

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top